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झारखंड में मुस्लिम सांसद : चुनावी बिसात में कहां और क्यों पीछे रह गया है ये चेहरा

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Zeb Akhtar

झारखंड में मुस्लिम आबादी 15 फीसद है। फिर भी मुस्लिम नेताओं का लोकसभा या विधानसभा में वैसा प्रतिनिधित्व कभी नहीं रहा जो आबादी के ऐतबार से अपेक्षित है। झारखंड गठन के बाद और पहले भी, मुस्लिम सांसदों और विधायकों की संख्या उंगलियों पर गिने जाने जितनी ही रही है। मुस्लिम सांसदों की बात करें, तो झारखंड गठन के बाद 2004 में गोड्डा सीट से संसद पहुंचने वाले फुरकान अंसारी अंतिम सांसद हैं। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था। आगे की बात करें, तो पिछले 4 लोकसभा चुनावों में फुरकान अंसारी एक मात्र मुस्लिम नेता रहे, जो झारखंड बनने के बाद लोकसभा तक पहुंच सके। 
इस बार भी वे कांग्रेस से टिकट चाहते थे, लेकिन उनको निराशा हाथ लगी। दूसरी ओर, हद तो ये है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक किसी भी पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा है। इसे और साफ शब्दों में कहें, तो किसी भी पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी पर भरोसा नहीं जताया है। इसमें कांग्रेस से लेकर जेएमएम, बीजेपी, राजद, जदयू और वाम पार्टियां भी शामिल हैं। हालांकि पीछे का इतिहास देखें तो तस्वीर इतनी बुरी नहीं है। पिछले 4 लोकसभा चुनाव का आंकड़ा देखें तो कांग्रेस ने 3, राजद ने 1, झाविमो ने 2, सपा ने 3, बसपा ने 3 औऱ वाम दल सीपीआई एमल ने 3 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकटे दिये थे। लेकिन इस बार स्थिति नील बटा सन्नाटा वाली है।   

इसका क्या कारण हो सकता है। ये राज्य की मुस्लिम आबादी को देखते हुए अहम सवाल है। कांग्रेस, जिसे देश की आजादी के बाद से मुसलमान अपना सबसे करीबी मानते रहे हैं, उसने भी किसी किसी मुस्लिम नेता को टिकट नहीं दिया है। हालांकि कांग्रेस हमेशा कहती रही है कि उसने मुसलमानों को प्रतिनिधित्व दिया है। यहां पार्टी के नेता डॉ सरफऱाज अहमद का नाम लेते हैं, जिनको अभी-अभी राज्यसभा भेजा गया है। लेकिन सरफऱाज के राज्यसभा पहुंचने को अलग नजरिये से देखने की जरूरत है। ये किसी लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने से अधिक ‘गिव एंड टेक’ का मामला अधिक दिखाई देता है। बहरहाल, एक कांग्रेस नेता फुरकान अंसारी को टिकट न मिलने पर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, फुरकान अंसारी को कांग्रेस ने छह बार टिकट दिया, लेकिन वे सिर्फ एक बार जीत सके। 2009 और 2014 में वे एकमात्र नेता रहे, जिन्हें कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया। गठबंधन में शामिल जेएमएम ने भी इस मामले कदम बढ़ाने से परहेज ही किया है।  

इस बाबत वरिष्ठ पत्रकार मधुकर कहते हैं, दो वजह से मुस्लिम नेता उभरकर सामने नहीं आ पाते। पहला कारण है, ग्रास रूट पर मुस्लिम नेता या कार्यकर्ता अगर अपनी पहचान बना भी लेता है, तो टिकट और वो भी लोकसभा चुनाव का टिकट पाने के लिए जो नेटवर्किंग और शीर्ष तक पहुंच चाहिए, वो उसके पास नहीं होता। इसके लिए धन भी चाहिये औऱ संबंधित पार्टी की शीर्ष राजनीति की समझ भी उसे होनी चाहिये। दूसरी वजह, वे आपसी टांग खिंचाई औऱ आपसी द्वेष को मानते हैं। मधुकर कहते हैं, प्रदेश के बड़े मुस्लिम नेता को चाहिये कि वे ग्रास रूट पर के मुस्लिम नेता या कार्यकर्ता को प्रमोट करें। उनपर भरोसा करें। लेकिन अधिकतर मामलों में वे जानबूझकर ऐसा नहीं करते हैं। ये बोलते हुए वे झारखंड के शीर्ष मुस्लिम नेताओं का उदाहरण भी देते हैं। वहीं राजनीतिक विश्लेषक श्रीनिवास कहते हैं, मुसीबत ये है कि आज सभी को हिंदू दिखना है। वो कहते हैं, पहले सभी दल कहते थे कि वे सेक्युलर हैं। साथ ही कहते थे कि हम ‘उन’ जैसा सेक्युलर नहीं हैं। ऐसी पार्टियों में बीजेपी भी शामिल रही है। अब सभी दल कहते हैं, हम भी हिंदू हैं। लेकिन ‘उन’ जैसा हिंदू नहीं हैं। श्रीनिवास कहते हैं, ऐसे बदले हुए माहौल में बड़ी पार्टिंयां मुस्लिम नेताओं को आगे बढ़ाने से कतराती हैं। वे कहते हैं, कभी कांग्रेस ने बरकतुल्लाह खान, एआर अंतुले और अब्दुल गफूर जैसे मुस्लिम नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया था। अब इस तरह का साहस दिखाने की स्थिति में खुद कांग्रेस भी नहीं है, तो दूसरी पार्टियों की क्या बात करें।    

बहरहाल अब, बीजेपी की बात करें, तो पिछले दो-ढाई दशक से, झारखंड में बीजेपी ने भी किसी भी मुस्लिम नेता पर भरोसा नहीं जताया है। चाहे वो लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव। हालांकि राज्य बनने के बाद सबसे अधिक समय तक यहां बीजेपी की ही सरकार रही, लेकिन मुसलमानों को केसरिया पार्टी ने भी निराश किया है। बीजेपी सरकारों की कैबिनेट में मुसलमान विधायकों को मौजूदगी शून्य जैसी रही।  

आबादी का फैक्टर 

ये जानना भी कम दिलचस्प नहीं है कि राज्य की 14 लोकसभा सीटों में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी राजमहल लोकसभा सीट में है। लेकिन राजमहल आदिवासी आरक्षित सीट है। आबादी के लिहाज से इस सीट पर मुस्लिम आबादी 493860 है। ये कुल वोटरों का 33.3 फीसद है। वहीं इस सीट पर आदिवासी आबादी 29.4 फीसद है,  जो मुस्लिम आबादी से कम है। गोड्डा संसदीय सीट में मुस्लिमों की आबादी कुल वोटरों का 21.1 फीसद है। यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 371320 है। कोडरमा सीट में भी मुस्लिम आबादी रिजल्ट को प्रभावित कर सकती है। यहां उनकी आबादी 391195 है, जो कुल वोटरों का 20.4 फीसद है। धनबाद में भी मुस्लिम आबादी 337017 है। ये कुल वोटरों का 15.9 फीसद है। वहीं, हजारीबाग, रांची, दुमका लोकसभा की ऐसी सीटे हैं, जहां मुस्लिम आबादी को नरजअंदाज कर चुनाव जीतना मुश्किल है। फिर भी इन सीटों से मुस्लिम प्रत्याशियों के जीतने पर हर दल को संशय बना रहता है। 


किस सीट पर कितनी मुस्लिम आबादी 

चतरा 198400 (13.5%)

धनबाद 337017 (15.9%)

दुमका 249084 (17.4%)

गिरिडीह 286800 (17%)

गोड्डा 371320 (21.1%)

हजारीबाग 307131 (18%)

जमशेदपुर 203150 (11.7%)

कोडरमा 381195 (20.4%)

लोहरदगा 182150 (14.4%)

पलामू 285222 (14.7%)

राजमहल 493860 (33.3%)

रांची 303109 (15.1%)

 

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